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प्रेमम : एक रहस्य! (भाग : 29)




मसूरी की अनेकों टेड़ी मेड़ी गलियों से भटकते हुए अनि एक छोटे घर के सामने जाकर रुका। इस समय उसके लिबास में अजीबोगरीब परिवर्तन हो चुका था, वह अपने रोजाना के सामान्य कपड़ो में न होकर एक ब्लैक कलर के लांग कोट और हैट में नजर आ रहा था, जिसमें उसका चेहरा भी छिपा हुआ था। कोट और हैट के लेफ्ट साइड येलो कलर का ईगल का लोगों बना हुआ था, जो एक जलते हुई आग के ऊपर मंडराता हुआ नजर आ रहा था। अनि की चाल में एक विशिष्टता थी, हर क्षण बदलने वाले अनि के चाल में स्थिरता थी। बड़ी ही तन्मयता से चलता हुआ वह उस घर के खिड़की को खटखटाया।

"हमेशा की तरह तुम इस बार भी तीन मिनट्स लेट हो सुप्रीम ईगल!" कमरे में एक नवयुवती का कठोर स्वर उभरा, एक आकृति हरकत में आई, दरवाजा खुला और अनि अंदर चलता गया। कमरे में नाममात्र का उजाला था।

"जानता हूँ ब्लैक वुल्फ! ये बताओ क्या बात है?" अनि ने उस लड़की से पूछा। वह लड़की भी अनि की भांति वाइट कलर के लांग कोट और हैट में नजर आ रही थी जिसके राइट साइड में एक छलांग लगाने को तैयार काला भेड़िया का लोगो लगा हुआ था।

"तुम तीन मिनट लेट आये हो सुप्रीम ईगल!" लड़की ने अनि की ओर देखते हुए कहा, चेहरा छिपे होने के कारण भाव स्पष्ट नहीं हो रहे थे परन्तु शब्दों में छिपी तल्खी को आसानी से महसूस कर पा रहा था।

"यार ठीक है न माईं बाप! माफ करी दो हमको, हो जाते हमेशा लेट, लगता जैसे घड़ी ही तेज चल जाती है जब मैं आता इधर…!" अनि ने बिफरते हुए कहा, हालांकि उसका भी चेहरा छिपा हुआ था इसलिए भाव स्पष्ट रूप से प्रत्यक्ष दिखाई नहीं दे रहे थे।

"शटअप ईगल!" लड़की ने जान लिया था कि भले रूल के खिलाफ हो लेकिन ये बन्दा अब अपनी बकवास पर उतर ही आएगा, और चीफ इसे आसानी से जाने नहीं देगा। "ब्लैक फारेस्ट के बारे में ही बात करनी है!"

"समझ ही नहीं आ रहा क्या बोलूं! ऐसा कोई क्लू ही नहीं जिससे इसे प्रूव किया जा सके। वो अरुण….!" फिर अनि उसे अरुण और अपने साथ हुई घटनाओ को संक्षेप में बताने लगता है।

"ऐसा होना लाजिमी है, रियलिटी में देखा जाए तो वह स्थान है ही नहीं…!" ब्लैक वुल्फ ने कहना आरंभ किया।

"मगर मैं और अरुण वहां से होकर आए हैं। दिमाग हिला देने वाली जगह है वो!" अनि ने उसकी बात सुनकर जवाब दिया। "तुमने तो मुझे ऐसे बुलाया था जैसे कोई बड़ा खजाना लग गया हो तुम्हारें हाथ!"

"कीप पेशेंस प्लीज!" ब्लैक वुल्फ, अनि को चुप कराती हुई बोली।

"किसी भी स्थान को जाने के लिए, उसका इतिहास और कारण जानना आवश्यक होता है। ये देखो…!" कहते हुए ब्लैक वुल्फ ने एक मोटी फ़ाइल अनि की ओर बढ़ाया। वह अजीबोगरीब भाषा में लिखी हुई थी, अनि को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था।

"जब मैंने ये सोचा कि कहीं ये सब किसी बलि के लिए तो नहीं किया जा रहा, अचानक ही मेरा माथा ठनका, मैंने हरेक विधि तलाश ली, लेकिन ये तो तय था कि कोई भी बलि विधि शारीरिक रूप से अपंग बच्चों के लिए नहीं बनी है। पर तभी मैंने वह चिन्ह देखा, जिसमें दो वृत के बीच एक तारे पर कुंडली मारकर बैठा फुफकारता नाग था, इन सभी घटनाओं में केवल यही एक बात थी जो कॉमन थी। मैं समझ गयी कि कुछ तो ऐसा है जो मुझसे छूटा हुआ है। दिन रात मेहनत करने के बाद, दुनिया लगभग सारी लाइब्रेरीज़ की खाक छानने के बाद हमारे हाथ ये लगा। ये किसी ने ऐसे ही रखां हुआ था, क्योंकि यह भाषा क्या है किसी को समझ नहीं, परंतु इसपर बना यह चित्र, ब्लैंक के लोगो से मिलता जुलता है। अब तुम सोचो कि हजारों सदियों लिखी इस किताब के लोगो (LOGO) का, जिससे दुनिया पूरी तरह अनभिज्ञ है, उसका अचानक से उभरे एक दल के साथ सम्बन्ध कैसे संभव है।

यह भाषा शायद संस्कृत से भी पुरानी हो या उसके समकालीन प्रयोग की जा रही होगी, परन्तु कालांतर में यह पूरी तरह उपेक्षित हो गयी और धीरे धीरे नष्ट हो गए। जब तक कबीले अपने मूल रूप में आये ये भाषा लगभग पूरी तरह लुप्त हो चुकी रही होगी।" कहते हुए ब्लैक वुल्फ ने ठहरकर एक लंबी सांस ली।

"तो क्या मुझे कहानी सुनने बुलाया गया है?" अनि ने घूरते हुए कहा।

"आगे सुनो, सबसे बड़ी बात की यह भाषा और ग्रन्थ भारत का है, यह जानना बहुत ही मुश्किल था। तभी हमें इसमे एक मानचित्र नजर आया, तब शायद सात के बजाए पांच महाद्वीप हुआ करते थे, इस विशाल महाद्वीप, जो कि आज यूरेशिया कहा जाता है, उसमें इस स्थान पर काले रंग से घेरा हुआ था। अगर इसका मिलान आज के भारत के नक्शे से किया जाए तो यह उत्तराखंड की ओर इंगित कर रहा है, अगले नक्शे में इसको और सही से दर्शाया गया है।" कहते हुए ब्लैक वुल्फ ने वो नक्शा वहीं फैला दिया, यह देखकर अनि बहुत अधिक हैरान था।

"तुम्हें क्या यकीन होता है कि ये  सदियों पुरानी किताब है? तब तो शायद नाव भी नहीं बनी थी ऐसे में समूचे संसार का मानचित्र बना पाना कोई मजाक नहीं है।" अनि को लग रहा था जैसे उसका टाइम खोटी हो रहा था।

"यही बात तो आज को समझनी है, कि हमारा अतीत हमसे हजार गुना आगे था, भले इसका कोई प्रमाण न मिले या मिले तो कोई यकीन न करे, परन्तु जिस तरह महर्षि वाल्मीकि का अपने स्थान पर बैठे बैठे ही रामायण का सटीक वर्णन करना या संजय का महाभारत के युद्ध को महल में बैठे बैठे ही देखना पूर्णतः सत्य है, वैसे ही यह भी संभव है कि इस किताब को लिखने वाले को संसार का सम्पूर्ण ज्ञान रहा हो। कजहां तक संभव है इसको पहले किसी पत्थर, ताम्रपत्र या ताड़पत्र पर लिखा गया रहा होगा, बाद में किसी ने अपने सजावट के लिए इसको कागज पर छपवाया होगा और नक्शे में सुधार भी लाया होगा। मगर याद रखो यहां बलि, संसार से छिपे स्थान के बारे में बात किया जा रहा है जिसे विज्ञान नकार देता है।"

"यानी उन महोदय ने यहां पे काला टिका लगाया, मतलब यहाँ काला जंगल है?"

"एक्जैक्टली! यही तो मैन प्वाइंट है!" ब्लैक वुल्फ ने कहा।

"मतलब!"

"मतलब..! हमने इस किताब की कॉपी को कई भाषाविदों को भेजी, मगर वे सब इसके बारे में जानने में असफल रहे। तो SW (सीक्रेट वारियर्स)  ने इस जगह को ढूंढा और पाया कि यह स्थान यही कहीं है मसूरी के जंगलों में ही! और इसका नाम दिया गया काला जंगल! चूंकि इस किताब को पढ़ पाना नियर इम्पॉसिबल है तो इससे और कोई मदद नही मिल पा रही थी, न ही इस स्थान का कोई असली नाम पता चला। तो फिर मैंने ब्लैंक के आदमियों के पीछा करना शुरू कर दिया, अचानक ही एक दिन काला जंगल में पहुँच गयी, मगर जैसे ही मैंने अंदर जाना चाहा वह अपने आप गायब हो गया। ऐसा आग रहा था मानो वह किसी दूसरे आयाम का गेटवे हो, मैंने गुप्त तरीके से वहां नजर रखा और पाया कि वह काला जंगल तभी खुलता है जब ब्लैंक वहां पहुँचता है, इसका एक मतलब तो तय था कि वह क्षेत्र तभी दिखेगा जब तक ब्लैंक या उसको खुलने के लिए बलि देने वाला शख्स मौजूद रहे। यह सब इतनी जल्दी जल्दी हो रहा था कि कुछ भी समझ पाना आसान नहीं था।"

"एक मिनट तुमने तो कहा था शारीरिक रुप से अपंगों के लिए कोई बलि विधि नहीं है….!"

"नहीं है। मगर इसके अलावा!" ब्लैक वुल्फ ने तेजी से पन्ने पलते, एक पृष्ठ पर चार पांच ऐसे बच्चों को मारने का दृश्य दिखाया जा रहा था, जिनकी आँख और कान गायब थे,एक के मुह को क्रॉस से बंद किया गया था मतलब वो गूंगा था।

"यह पॉसिबल ही नहीं हो सकता, ये किताब रियल हो ही नहीं सकती।" अनि भड़क उठा।

"तुम काले जंगल से घूम आये हो, तुम और अरुण दोनों लगभग एक ही टाइम पर काले जंगल से बाहर निकल आये, इससे ये प्रूव होता है कि मेरी बात सच है। ये किताब झूठी नहीं है, मगर इसके अंतिम के कुछ पृष्ठ नहीं है, जिनपर चित्र कलाकृतियां बनी हुई थी, इसलिए समझ नहीं आ रहा कि वह क्या करेगा क्योंकि बलि प्रक्रिया अभी पूर्ण नहीं हुई है, क्योंकि अगर ऐसा होता तो ब्लैंक को अब तक वो मिल चुका होता जो उसे चाहिए!"

"तो उसे काले जंगल से क्या चाहिए?" अनि ने सवाल किया।

"इसका जवाब तुम्हें खुद ही ढूंढना होगा सुप्रीम ईगल! मैं जीतना मदद कर सकती हूँ अवश्य करूंगी।" कहते हुए ब्लैक वुल्फ उस किताब को लेकर कमरे के अंदर चली गयी। अनि कुछ देर वहीं बैठा कुछ सोचता रहा फिर मन मसोसकर बाहर निकल गया। चूंकि देहरादून में कर्फ्यू था जिसका प्रभाव यहां भी भली भांति दिख रहा था, सड़को पर किसी के होने के निशान तक न थे। अनि तेजी से गलियों को बदलते जंगल की ओर बढ़ता चला जा रहा था।

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"मैंने अपनी हर चीज गंवा दी, मैं तुम्हारे कातिलों को सजा नहीं दे सका मुझे माफ करना!" शहर से दूर एक पहाड़ी पर चट्टान के ऊपर बैठा हुआ आदित्य रुवांसे स्वर में चीख रहा था। उसकी हालत देखकर ऐसा लग रहा था मानो वह कितनी देर से रो रहा हो, आँखे बिल्कुल लाल हो चुकी थी। "मुझे इसका बेहद अफसोस है सिया! मगर अब मैं हरेक को जिन्होंने तुम्हें मारा और मरते देखा, सभी से इसकी कीमत वसूलूँगा, बस बहुत हो गया।" वह आँखे बंद करके चीखता गया।"

"तुम कुछ भी नहीं कर सकते आदित्य! जबकि तुम्हें पता है कि तुम्हें क्या करना है!" अचानक उसके मस्तिष्क में स्वर उभरा, दर्द के साये में जी रहे आदित्य के जेहन में ज़हर घुल गया, वह बुरी तरह विकल गया। उसका दिल दिमाग सब काबू से बाहर था, सामने बहुत ही गहरी घाटी थी, जिसमें गिरने का मतलब एक निश्चित मौत से कम कुछ भी न था।

"आदि! आदि…! तुम यहाँ क्या कर रहे हो?" तभी उसके कानों में एक स्वर गूंजा।  आदित्य की तंद्रा भंग हुए वह अपने चेहरे को हाथों से मलते सामान्य बनने की कोशिश करते हुए पीछे मुड़ा। मेघना बड़ी तेजी से उसकी ओर बढ़ी चली आ रही थी, इस वक़्त भी वो पुलिस की वर्दी में ही थी।

"हे! तुम यहाँ कैसे?" आदित्य ने स्वयं को सामान्य दिखाने की कोशिश करते हुए कहा।

"तुम रो रहे थे?" मेघना ने भर्राए कंठ से पूछा।

"अरे नहीं तो…!" अदित्य ने अनजान बनते हुए कहा।

"मुझसे झूठ मत बोलो बचपन से जानती हूं तुम्हें, तुम हर किसी के सामने झूठ बोल सकते हो पर मेरे सामने नहीं!" मेघना ने उसे चट्टान पर हाथ टिकाकर रखते हुए कहा। "जानती हूँ तुम अब भी उसे याद करते हो पर प्लीज आदि! अब वो नहीं उसके लिए तुम हमारा फ्यूचर बर्बाद नहीं कर सकते!"

"हमारा कौन सा फ्यूचर, ये बस मेरा फ्यूचर है।" आदित्य ने मेघना को घूरते हुए कहा।

"इसका मतलब मैं कुछ नहीं लगती तुम्हारी?" मेघना ने नाराजगी भरे स्वर में पूछा।

"मैंने ऐसा तो नहीं कहा, पर ये सिर्फ मेरा फ्यूचर है।" आदि ने क्लैरिफिकेशन देते हुए कहा।

"अच्छा बाबा! अब घर चलो, पुलिसवाले हो इसका मतलब ये नहीं कि कहीं भी घूमो, बड़ी मुश्किल से ढूंढा है तुम्हें! मुझे इस केस में तुम्हारी मदद चाहिए!" मेघना ने बड़े प्यार से कहा।

"मेघ! तुम जाओ यहां से, मुझे अकेला छोड़ दो।" आदित्य ने मेघना की बात अनसुनी करते हुए कहा।

"जिद मत करो आदि!" मेघना ने उसका हाथ पकड़कर खींचते हुए कहा, आदित्य ने चट्टान को कसकर पकड़ लिया।

"मुझे कहीं नहीं जाना है मेघ! एटलीस्ट तुम तो समझो यार!" कहते हुए आदित्य के आंखों से आँसू बह निकले। "काश! मैं उसे बचा पाता।" आदित्य अफसोस भरे लहजे में बोला।

"हम हमेशा जो चाहते हैं वो नहीं मिलता आदि! सिया और तुम्हारे परिवार के साथ जो कुछ भी हुआ उसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है, ये ईश्वर की मर्ज़ी है।" मेघना बड़े प्यार से समझाते हुए बोली।

"तो फिर ईश्वर को अपनी मर्ज़ी का फैसला करना छोड़ देना होगा।" आदित्य भर्राए कंठ से बोला।

"ये कैसी बहकी बहकी बात कर रहे हो आदित्य? कहीं तुम बीमार तो नहीं हो? चलो डॉक्टर के पास चलकर तुम्हें दिखवाती हूँ।" मेघना ने फिर उसका हाथ पकड़ा, मगर आदित्य ने छुड़ा दिया। मेघना के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे, उसने अपने दोनों हाथों से अपने चेहरे को ढक लिया।

"तुम यहाँ से जो प्लीज!" कहते हुए आदित्य ने अपना मुँह दूसरी ओर कर लिया, मेघना ने एक बार उसको देखा फिर लंबे लंबे कदमों से वहां से जाने लगी, जाते हुए उसने मुड़ मुड़कर तीन चार बार देखा मगर आदित्य अपने पूर्व मुद्रा में बैठा हुआ शून्य में खोया हुआ था। आँसुओ के सैलाब ने आँखों की बांध तोड़कर गालों पर लुढ़कने लगे। मेघना अपने जीप पर बैठने से पहले उसकी ओर एक बार और देखा मगर वह अब भी अपनी पूर्व स्थिति में ही था। मेघना ने जीप स्टार्ट किया और वहां से वापिस चली गयी।

क्रमशः….


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4 Comments

Dusri duniya ka gateway 😁 ab hum is story ko aur padhenge. Alternate reality k hum bahut bade fan hai.

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🤫

02-Dec-2021 10:51 AM

Good... Story...

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Fauzi kashaf

02-Dec-2021 10:35 AM

V good

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